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गाउट - इलाज एवं परहेज़ | Gout Treatment and Abstinence - Dr, Ashish Badika

गाउट – इलाज एवं परहेज़ – डॉ. आशीष बाड़ीका

गाउट के उपचार में आमतौर पर दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कौन सी दवाएं आपके लिए सही होंगी इसका निर्धारण आपकी मौजूदा स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर आपके डॉक्टर द्वारा किया जाता है। गाउट की दवाओं के इस्तेमाल से इसके मौजूदा स्थिति के साथ ही इससे भविष्य में होने वाले खतरों को भी कम किया जा सकता है।

गाउट के इलाज | Treatment of Gout

गाउट का इलाज करने के लिए इन दवाओं को इस्तेमाल किया जाता है:

एंटी इंफलामेट्री दवाएं: जैसे आईबुप्रोफेन, नेप्रोक्सीन सोडियम, सेलीकोक्सीब। शुरुआत में आपके डॉक्टर गाउट के प्रभाव को तुरंत कम करने के लिए इन दवाओं का उपयोग सकते हैं। बाद में इन दवाओं की खुराक को धीरे-धीरे कम किया जाता है।

कॉर्टिकोस्टेरॉइड: कॉर्टिकोस्टेरॉइड गाउट की सूजन और दर्द को नियंत्रित करती हैं। कॉर्टिकोस्टेरॉइड की दवा को गोली के रूप या फिर इंजेक्शन के माध्यम से भी अपने जोड़ों में में लगा सकते हैं।
कॉर्टिकोस्टेरॉइड आमतौर पर उन लोगों के लिए आरक्षित होती हैं जो एनएसएआईडी या कॉलकिसाइन नहीं ले सकते हैं।

फेबक्सोस्टेट: यूरिक एसिड का स्तर कम करने वाली दवाएं, जैसे कि फेबक्सोस्टैट, गाउट के दीर्घकालिक उपचार के लिए बहुत प्रभावी हैं। वे विशेष रूप से सहायक हो सकते हैं यदि: आपको बार-बार गाउट के दौरे पड़ रहे हों। गाउट के हमलों से आपके जोड़ या गुर्दे क्षतिग्रस्त हो गए हैं।

एलोप्यूरिनॉल: एलोप्यूरिनॉल शरीर की कोशिकाओं द्वारा बनाए गए यूरिक एसिड की मात्रा को कम करके काम करता है। गठिया में, यह जोड़ों में यूरिक एसिड क्रिस्टल के निर्माण को रोकने में मदद करता है। यह जोड़ों में सूजन और दर्द को रोकने में मदद करता है।

गाउट में परहेज


गाउट की स्थिति कुछ खाद्य पदार्थों से खराब हो सकती है। जो व्यक्ति इस बीमारी से ग्रसित हैं, निम्नलिखित खाद्य पदार्थों से के सेवन से परहेज करना चाहिए –


मीट: यदि कोई व्यक्ति रेड मीट या ऑर्गन मीट को पसंद करता है, तो उसके लिए यह जानना जरूरी है कि इन दोनों तरह के मीट में प्यूरीन की मात्रा अत्यधिक होती है, जो गाउट के लक्षणों को खराब कर सकते हैं।


समुद्री भोजन: रेड मीट की तरह, कुछ प्रकार के समुद्री भोजन भी प्यूरीन से समृद्ध होते हैं और इसलिए यह खून में यूरिक एसिड के स्तर में वृद्धि का कारण बनते हैं। समुद्री भोजन में म्यूसल, लॉबस्टर, श्रिम्प, केकड़े और सीप शामिल हैं।


हाई फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप: हाई फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप का सेवन करना गाउट के लिए एक जोखिम कारक माना जाता है।


एल्कोहल: एल्कोहल यूरिक एसिड के स्तर को बढ़ाने के अलावा फ्लेयर-अप (स्थिति को खराब करने के जोखिम) को भी बढ़ावा देता है, जो कि गाउट के लिए खतरानाक है।

गाउट क्या है और क्यों होता है | What is gout and why does it happen

गाउट क्या है और क्यों होता है – डॉ. आशीष बाड़ीका

जोड़ो के दर्द की समस्या एक गम्भीर समस्या हैं जिसके अनेक कारण हो सकते हैं। जोड़ो के दर्द की समस्या का एक मुख्य कारण गाउट बीमारी भी हैं। इस बीमारी में कई बार अचानक से जोड़ो में तेजी से दर्द उठता हैं जो कुछ घण्टो से लेकर कुछ दिनों तक चल सकता हैं।

गाउट क्या है? | What is Gout?

गाउट एक गंभीर बीमारी हैं जो गठिया के रूप में परिभाषित की जाती हैं जिसे हिंदी में ‘वातरक्त’ कहा जाता है। इस तरह के गठिया में शरीर में यूरिक एसिड के बढ़ने के कारण उसके क्रिस्टल बनने लगते है जो शरीर के जोड़ो में जम जाते है। इससे शरीर की अनेक जोड़ प्रभावित होते है लेकिन सबसे अधिक प्रभाव पैर की उंगलियों के सबसे बड़े जोड़ अर्थात पैर के अंगूठे पर पड़ता है।

यह एक गंभीर रोग या फिर कहा जाये तो समस्या होती है जिसके लक्षण कुछ घंटो से लेकर कई दिनों तक दिख सकते है। जब समस्या अचानक से आकर जोड़ो को प्रभावित करती है और पीड़ा उत्पन्न करने के साथ विभिन्न प्रकार की समस्याए पैदा करती है तो उस इस स्थिति को गाउट अटैक भी कहा जाता है। यह अटैक अचानक से आ सकता है जो अपने आप चला भी जाता है, लेकिन इसके भविष्य में आने की काफी अधिक संभावनाए होती है।

अगर बात की जाये गाउट के प्रकारो की तो गाउट के मुख्य रूप से 2 प्रकार होते है जो कुछ इस प्रकार है:

अल्पकालीन गाउट: अल्पकालीन गाउट एक पीड़ादायक गाउट होता है जिसके होने पर शरीर के एक-दो जोड़ो में भयंकर दर्द उठता है। इसके लक्षण मुख्य रूप से गाउट अटैक आने पर ही देखे जाते है। यह कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताहों तक रहता है।

दीर्घकालीन गाउट: दीर्घकालीन गाउट में कुछ समय के लिए आराम रहता है लेकिन मुख्य रूप से पीड़ा होती रहती है। यह लम्बे समय तक रहता है और जोड़ो पर प्रभाव डालता है।

गाउट क्या है और क्यों होता है | What is gout and why does it happen

गाउट क्यों होता है? | Why Does Gout Happen?

जैसा की हमें आपको बताया की शरीर में यूरिक एसिड स्तर के बढ़ने के कारण यूरिक एसिड के क्रिस्टल बनने लगते है जो जोड़ो में जम जाते है जिसकी वजह से शरीर के जोड़ो पर प्रभाव होता है।

अब अगर बात की जाये शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने के कारणों की तो वह कुछ इस प्रकार है:

  • अधिक वजन बढ़ना और मोटापा
  • ड्यूरेटिक्स अर्थात मूत्रवर्धक दवाओं का अधिक सेवन
  • अधिक प्यूरिन युक्त खाद्य पदार्थो का सेवन
  • शराब व अन्य मादक पदार्थो का सेवन
  • विभिन्न अनुवांशिक समस्याए
  • किडनी में आई खराबी या किडनी की कार्यक्षमता कम होना
  • किमो थेरेपी जैसे इलाज जो शरीर में मृत कोशिकाओं की संख्या बढ़ाते है
  • रक्त कैंसर और अन्य तरह के कैंसर

गाउट एक पीड़ादायक रोग है| समय पर विशेषज्ञ की देखरेख में इलाज करवाने से इससे होने वाले कष्ट एवं दुष्प्रभावों से बचाव सम्भव है।

रूमेटाइड अर्थराइटिस (गठिया) हृदय रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है।

रूयूमेंटाईड अर्थराइटिस (गठिया) हृदय रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है। – डॉ. आशीष बाड़ीका

रूयूमेंटाईड अर्थराइटिस (गठिया) हृदय रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है। रूयूमेंटाईड गठिया वाले लोगों में हृदय पर प्रभाव, सूजन रक्त वाहिकाओं में फैलती है और संकुचन की ओर ले जाती है। हृदय को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति करने वाली धमनियां रूयूमेंटाईड गठिया के रोगियों में अवरुद्ध हो सकती हैं, इस से एनजाइना, दिल का दौरा, अचानक मौत और दिल की विफलता हो सकती है।

रूयूमेंटाईड गठिया वाले लोगों में दिल का दौरा पड़ने का अधिक जोखिम होता है और रूमेटाइड गठिया के बिना लोगों की तुलना में दिल की विफलता की संभावना दोगुनी होती है।

सक्रिय रूयूमेंटाईड गठिया वाले रोगियों में नियंत्रित रोगों वाले रोगियों की तुलना में दिल के दौरे का खतरा अधिक होता है।

रूयूमेंटाईड गठिया के लिए लोगों को अपने चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए क्योंकि यह रोग उपचार योग्य है, लेकिन केवल तभी जब इसकी प्रारंभिक अवस्था में ध्यान रखा जाए। अज्ञानता से अपूरणीय क्षति हो सकती है जिससे न केवल दिल का दौरा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है।

रूमेटाइड अर्थराइटिस (गठिया) - मिथक एवं तथ्य - डॉ. आशीष बाड़ीका

रूमेटाइड अर्थराइटिस (गठिया) – मिथक एवं तथ्य – डॉ. आशीष बाड़ीका

रोग के नाम के बारे में धारणा बनाने की हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। गठिया शब्द उम्र, लक्षण और इलाज न होने की भावना को व्यक्त करता है। यहां इस बीमारी के कुछ मिथक और तथ्य दिए गए हैं।

भ्रांति – दवाओं के दुष्प्रभाव बहुत जोखिम भरे होते है।


तथ्य- दवाओं से परहेज करने का नकारात्मक प्रभाव बहुत अधिक होता है। न सिर्फ़ जोड़ शरीर के मुख्य अंगो पर भी दुष्प्रभाव होता है|

भ्रांति – रूमेटाइड अर्थराइटिस (गठिया) का कोई इलाज नहीं है

तथ्य – लक्षित उपचार रोग की प्रगति को धीमा कर सकते हैं, आप चीजों को अपने नियंत्रण में ले सकते हैं बशर्ते आप तुरंत अपने डॉक्टर के पास पहुंचें और उनकी सलाह का पालन करें।

भ्रांति – धूम्रपान से कोई हानि नहीं होती

तथ्य – अध्ययनों के अनुसार धूम्रपान करने वालों में गंभीर सूजन और रोग बढ़ने का जोखिम काफी बढ़ जाता है।

भ्रांति – गठिया रोगियों में जोड़ों का खराब होना अनिवार्य है।


तथ्य – इस बीमारी पर निरंतर शोध और अध्ययन के परिणामस्वरूप बेहतर चिकित्सा विकल्प उपलब्ध हैं।
अधिकांश रोगी अब सामान्य कार्य को बनाए रखने और विशेष रूप से हाथों में असामान्यताओं से बच सकते हैं।

रूमेटाइड अर्थराइटिस (गठिया) - यह लाइलाज नहीं है? - डॉ. आशीष बाड़ीका

रूमेटाइड अर्थराइटिस (गठिया) – यह लाइलाज नहीं है? – डॉ. आशीष बाड़ीका

हम इंसान हैं और हमारे पास अनेक धारणाएं हैं, हम धारणाएँ स्वयं बनाते हैं और जब भी हमें किसी बीमारी के बारे में पता चलता है, तो हम इसे इंटरनेट पर गुगल करना शुरू कर देते हैं। रुमेटीइड अर्थराइटिस के मामले में भी ऐसा ही है। अधूरी जानकारी के कारण लोगों में कई तरह की भ्रांतियां या मिथक प्रचलित हैं।

बहुत से लोग गठिया के बारे में बहुत कम जानते हैं, और वे इसके उपचार और कारणों के बारे में कई गलतफहमियां पैदा करते हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि यह उम्र से संबंधित बीमारी है। कुछ लोग कहते हैं कि यह इस रोग का लाइलाज है। कुछ लोगों का कहना है कि इसका इलाज महंगा है या इसके ऑपरेशन की जरूरत पड़ सकती है।

जो लोग जो इससे पीड़ित हैं उन्हें पता होना चाहिए कि इस बीमारी पर उचित ध्यान देने की आवश्यकता है और इसकी उपेक्षा करने से शरीर में कुछ गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, और दूसरा यह कि यह बीमारी अच्छी तरह से नियंत्रित हो सकती है।
यदि प्रारंभिक अवस्था में ही इस पर ध्यान दिया जाए, तो रोगी रुमेटोलॉजिस्ट की देखरेख में दवाओं को जारी रखने के साथ बहुत तेजी से नियमित जीवन की ओर बढ़ सकता है।

यह सलाह दी जाती है कि जिन लोगों को जोड़ों में सूजन या दर्द था, उन्हें तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए ताकि बीमारी का प्रारंभिक चरण में निदान किया जा सके और थोड़े समय में नियंत्रित किया जा सके। प्रारंभिक निदान लोगों को इन रोग-संबंधी लक्षणों से बहुत जल्दी छुटकारा पाने में मदद करेगा।

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